क्यों की जाती है एंजियोग्राफी ?
डा. एसपी सिंह से जानिये कब पड़ती है मरीज को एंजियोग्राफी की जरूरत
रूद्रपुर। कहा जाता है कि एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है, और शरीर के स्वस्थ होने के लिए आवश्यक है की मनुष्य का दिल स्वस्थ हो। जब हमारे दिल में या हमारे शरीर के किसी अंग में किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न होता है या हमारा हार्ट सही प्रकार से काम नहीं करता तब उसकी जाँच करने के लिए एंजियोग्राफी की जाती है। एंजियोग्राफी एक डायग्नोस्टिक प्रोसेस है जो यह जानने के लिए की जाती है कि आपकी आर्टरी में कोई ब्लॉकेज तो नहीं है।
नारायण अस्पताल के सीनियर हार्ट स्पेशलिस्ट डा. एसपी सिंह से जानते हैं कि एंजियोग्राफी कैसे की जाती है, और किस लिए की जाती है। एंजियोग्राफी एक प्रकार का टेस्ट होता है जिसमें एक्सरे तकनीक के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों की जाँच की जाती है। इस टेस्ट में शरीर के जिस हिस्से की जाँच करनी है उसे एक्स रे के द्वारा देखा जाता है जिसके लिए उस हिस्से की ब्लड वेसेल्स में एक अपारदर्शी पदार्थ इंजेक्ट किया जाता है जिससे उस हिस्से के अंदर का सब साफ.साफ दिखाई दे। जब एक्सरे तकनीक के द्वारा हार्ट के विभिन्न चौंबरों और आर्टरीज/धमनियों में एक विशेष प्रकार की दवाई या डाई को इंजेक्ट कराकर डॉक्टर हार्ट के ब्लड फ्रलो और ब्लड प्रेशर को जांचते हैं और यह जांचते हैं कि आपकी कोरोनरी आर्टरीज में कोई ब्लॉकेज तो नहीं है, तो इस प्रकार के टेस्ट को कोरोनरी एंजियोग्राफी कहते हैं। इस टेस्ट को एंजियोग्राम के नाम से भी जाना जाता है। एंजियोग्राफी या एंजियोग्राम अस्पताल के कैथीटेराइजेशन लैब या कैथ लैब में की जाती है। एंजियोग्राफी से पहले हेल्थ केयर टीम आपको विशिष्ट बातें बताएगी और आपके द्वारा ली जाने वाली किसी भी दवा के बारे में भी आपसे बात करेगी। आमतौर पर एंजियोग्राफी टेस्ट की पूरी प्रक्रिया करीबन 1 से 2 घंटे की होती है । इस टेस्ट में शरीर के जिस हिस्से की जाँच करनी है उसे एक्सरे के द्वारा देखा जाता है जिसके लिए उस हिस्से की ब्लड वेसेल्स में एक अपारदर्शी पदार्थ इंजेक्ट किया जाता है जिससे उस हिस्से के अंदर का सब साफ. साफ दिखाई दे। इसके लिए टाँग के ऊपरी हिस्से या हाथ की नस में एक ट्यूब घुसाई जाती है जिसे कैथेटर कहते हैं। कैथेटर के द्वारा शरीर के उस हिस्से में डाई इंजेक्ट कराई जाती है, और जब डाई ब्लड वेसेल्स में आगे बढ़ती है तो उस समय एक्सरे ले लिया जाता है। यह टेस्ट विशेष रूप से यह बताता है कि शरीर के किसी हिस्से में ब्लड फ्रलो और ब्लड सप्लाई अच्छे से हो रही है या नहीं। टेस्ट के बाद कम से कम 4 .5 घंटे का आराम रोगी को दिया जाता है।
एंजियोग्राफी टेस्ट पूरा होने के बाद केथेटर ट्यूब को निकाल लिया जाता है और उस जगह को कुछ समय के लिए रुई से दबा दिया जाता है जिससे व्यत्तिफ़ का खून न बहे। कभी कभी डॉक्टर उस हिस्से को भरने के लिए टाँके लगा देते हैं या पट्टी या ड्रेसिंग कर देते हैं। इस प्रक्रिया में केवल इस बात का पता लगाया जाता है कि कहीं दिल में किसी प्रकार की गांठ तो नहीं जो रत्तफ़ के प्रवाह में रूकावट डाल रही हो। इसलिए इन बातों का पता लगने से आप आगे की जांच और प्रक्रिया के लिए तैयार रह सकेंगे। एंजियोग्राफी के दौरान लोकल एनस्थिसिया दिया जाता है। इसका मतलब है कि मरीज को पता होता है कि उसके आसपास क्या हो रहा है। जबकि सामान्य एनस्थिसिया में मरीज को पता नहीं चलता कि उसके साथ क्या हो रहा है। एक बार एंजियोग्राफी हो जाने के बाद अगर डॉक्टर एंजियोप्लास्टी करने की बात कहे तो उसी दिन करा लेना ठीक होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल में दोनों बार ट्यूब डाली जाती है और एंजियोप्लास्टी के समय इस ट्यूब में से केवल एक वायर गुजारा जाता है। अगर किसी कारणवश, मरीज या उसके परिवार का कोई सदस्य इस प्रक्रिया से मना कर दे तो ट्यूब निकाल दी जाती है और मरीज को घर भेज दिया जाता है। मरीज को बाद में बुलाया जाता है और फिर एक बार ट्यूब डाली जाती है, जिसका मतलब है कि मरीज को उसी प्रक्रिया से दोबारा गुजरना पड़ता है। अगर एंजियोग्राफी हाथों से की जाती है तो मरीज दो घंटों के भीतर घर जा सकता है। आजकल इसी पद्धति का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है, जबकि पहले ट्यूब को ग्रॉइन की मदद से डाला जाता था। लेकिन ग्रॉइन से ट्यूब डाली जाने पर मरीज को 6.8 घंटे तक अस्पताल में ही रहना होता है।
शरीर के ये संकेत दिल के लिए खतरे की घंटी
रूद्रपुर। हमारे शरीर की बनावट कुछ इस तरह की है कि बॉडी में किसी भी तरह की तकलीफ हो तो उसके संकेत पहले से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। अगर दिल की बीमारियों की बात करें तो कई ऐसे लक्षण हैं जिन्हें देखकर ही हार्ट डिजीज का अंदेशा महसूस किया जा सकता है। दिल हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। आजकल कम उम्र में ही लोगों को हार्ट डिजीज होने लगी है। इसके पीछे की वजह बेतरतीब लाइफ स्टाइल और गलत खान.पान भी बन रहा है। आमतौर पर सीने में दर्द होने को ही दिल से जुड़ी बीमारियों का संकेत माना जाता है लेकिन शरीर के अन्य अंगों में दर्द होना भी दिल की बीमारियों का संकेत हो सकता है। नारायण अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एसपी सिंह का कहना है कि दिल की बीमारियों का अगर समय रहते पता लगा लिया जाए तो उनका सही तरीके से इलाज किया जा सकता और पेशेंट्स को भविष्य में होने वाले रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। डा. एसपी सिंह के मुताबिक दिल की बीमारियों के दौरान अलग.अलग तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि कई बार लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि ये दिल की बीमारी से संबंधित हो सकते हैं। गले में दर्द होना, जबड़े में दर्द, गर्दन का दर्द और पेट के ऊपरी हिस्से का दर्द भी दिल की बीमारी होने का संकेत दे सकता है। इसके साथ ही पीठ के हिस्से में दर्द होना और हाथ या पैर में ठंडापन आने लगना भी हार्ट डिजीज का संकेत हो सकता है।इसके अलावा कोरोनरी आर्टरी डिजीज में सीने में दर्द, सीने में जकड़न, सीने में दबाव और असहजता महसूस करना, सांस लेने में कठनाई, गला, जबड़ा, गर्दन, पेट का ऊपरी हिस्सा या पीछे के हिस्से में दर्द, थकान, कमजोरी या हाथ.पैरों का ठंडा होना जैसे लक्षण होते हैं। दिल की धड़कन अनियमित होने पर सीने में दर्द और असहजता, चक्कर आना, बेहोशी आना,छाती में फड़फड़ाहट होना,दिल की धड़कन तेज हो जाना ,सांस लेने में परेशानी, दिल की धड़कन धीमी होना जैसे लक्षण नजर आते हैं।