हार्ट अटैक सहित कई बिमारियों से बचाता है विटामिन डी 3
रूद्रपुर। विटामिन डी की कमी आज स्वास्थ्य से जुड़ी आम समस्या बन गई है। असल में विटामिन डी वसा घुलनशील होता है जिसका सीधा स्रोत सूर्य की रोशनी या किरणें होती हैं। सबसे मुश्किल बात ये है कि प्राकृतिक तरीके से इसकी कमी की पूर्ति नहीं की जा सकती है यानि धूप काफी नहीं होती है। इसीलिए आजकल विटामिन डी की कमी होने लगी है क्योंकि ऑफिस जाने वाले लोग सुबह घर से निकलकर ‘एस.सी.’ वाले ऑफिस में दिन भर रहते हैं और शाम को निकलते है जिससे धूप के संपर्क में न के बराबर रहते हैं। रिसर्च के अनुसार पौष्टिक दूध में कुछ मात्रा में विटामिन डी मिलता है लेकिन वह हर दिन के जरूरत को पूरा करने में असक्षम होता है। विटामिन डी 3 को ‘सनशाइन विटामिन’ के रूप में भी जाना जाता है। यह कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण में सहायता करता है, जो हड्डियों को मजबूत रखने के साथ साथ कई गंभीर बिमारियों से भी बचाता है।
हड्डियों को मजबूत बनाने और बनाए रखने के लिए पर्याप्त विटामिन डी, कैल्शियम और फास्फोरस प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। विटामिन डी एक पोषक तत्व है जिसका उपयोग हड्डियों की समस्याओं को ठीक करने और रोकने के लिए किया जाता है। जब त्वचा सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती है, तो शरीर विटामिन डी का उत्पादन करता है। अगर आप दिल की बीमारियों के मरीज़ हैं तो विटामिन डी3 की खुराक आपके दिल के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। हाई ब्लड प्रेशऱ, फैट जमा होना, धमनी की दीवार में कोलेस्ट्रॉल व डायबिटीज़ जैसी कई बीमारियों से आपके दिल को नुकसान पहुंच सकता है और इससे दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक चूंकि, विटामिन डी3 का सेवन हड्डियों से जुड़ा हुआ है। हड्डियों के इलाज में इस्तेमाल की गई इसकी ज्यादा मात्रा दिल से जुड़ी प्रणाली के लिए फायदेमंद हो सकती है। वैसे तो आम तौर पर विटामिन डी3 हड्डियों के साथ जुड़ा हुआ है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में चिकित्सकीय जांच में पता चला है कि ऐसे लोग जिन्हें स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ा या जिन्हें उनका ख़तरा हो उन मरीजों में डी 3 की कमी रही है। इसका मतलब यह नहीं है कि डी3 की कमी की वजह से दिल का दौरा पड़ता है, लेकिन यह दिल के दौरे के जोखिम को बढ़ा देता है।
आधुनिक युग में विटामिन डी की कमी की शिकायत बहुत से लोगों को होती है। विटामिन डी पाने का सबसे अच्छा और सस्ता तरीका है धूप। जो लोग धूप में ज््यादा निकलते थे, बाहर काम करते हैं उनमें विटामिन डी की कमी नहीं देखी जाती लेकिन उसके उलट शहरी इलाकों में जहां लोग अक्सर एयरकंडीशन्ड ऑफिस में काम करते हैं और ज्यादातर समय घर के भीतर रहते हैं उनमें इसकी कमी पायी जाती है। विटामिन डी की कमी से बच्चों में रिकेट्स या सूखा रोग और बड़ों में ऑस्टीओपरोसिस होने का ख़तरा होता है। इसके अलावा अगर आप अक्सर टेंशन और डिप्रेशन महसूस करते हैं या आप बुझे-बुझे से रहते हैं, किसी काम में मन नहीं लगता तो आपमें विटामिन डी 3 की कमी हो सकती है। दरअसल धूप में रहने से हमारे रक्त में सेरोटोनिन हार्माेन बनता है, जिससे मूड अच्छा होता है। यही नहीं विटामिन डी3 की कमी से आपको थकान ज्यादा लगती है। बोन फ्रैक्चर, मांसपेशियों में खिंचाव, जोड़ों में दर्द, हड्डी का दर्द, पीठ दर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं। विटामिन डी3 की कमी को महिलाओं में बाल झड़ने या हेयर लॉस की एक बड़ी वजह भी माना जाता है।
क्यों होती है विटामिन डी3 की कमी
विटामिन डी3 की कमी मूलतः इसलिए होती है क्योंकि शरीर इस विटामिन को तभी बनाता है जब वह सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है। इसलिए अगर आप कम से कम धूप के संपर्क में आते है या घर में ही रहते हैं तो आप में विटामिन डी3 की कमी होने की संभावना ज्यादा रहती है। अगर कहीं सिर को ढककर रखने की प्रथा है या ऐसा काम करते हैं जिससे आप धूप के संपर्क में कम रहते हैं या ऐसी किसी जगह में रहते हैं जहां धूप कम उगती है तो वहां विटामिन डी3 की कमी होने की संभावना ज्यादा होता है। असल में हड्डियों के विकास के लिए कैल्शियम और विटामिन डी3 की जरूरत होती है और किडनी कैल्सीटेरॉल नाम का एक हार्माेन उत्पादित करता है जो हड्डियों को ब्लड से सही मात्रा में कैल्शियम लेने में सहायता करता है। इसलिए किडनी के सही तरह से काम न करने पर विटामिन डी3 अपना काम नहीं कर पाती है। जिसके कारण हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।-अक्सर ये भी होता है कि रक्त से वसा की कोशिकायें विटामिन डी3 को सोख लेती है जिसके कारण विटामिन डी की कमी हो जाती है, यानि बॉडी मास इंडेक्स जितना ज्यादा होगा शरीर में विटामिन डी की कमी उतनी ही होगी।
विटामिन डी3 की कमी के आम लक्षण
विटामिन डी3 के कमी के कुछ प्राथमिक लक्षण भी होते हैं। जो वैसे तो इतने आम होते हैं कि इसकी कमी के बारे में समझना मुश्किल हो जाता है। विटामिन का मूल काम कोशिकाओं का विकास, प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाना, सूजन कम करना और नॉर्मल बोन मिनरल डेन्सिटी को मेंटेन करना है।
बार-बार बीमार पड़नाः विटामिन डी के कमी के कारण इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो जाता है जिसके कारण बार-बार सर्दी-खांसी या फीवर या लंग डिज़ीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
ज्यादा थकान महसूस होनाः थकान महसूस होना तो सबसे आम लक्षण होता है क्योंकि शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। इसके कारण हमेशा नींद या किसी भी काम को करने की ऊर्जा नहीं रहती है।
पीठ, मांसपेशियों या हड्डियों में दर्दः विटामिन डी हड्डियों को स्वस्थ रहने में मदद करता है इसलिए विटामिन डी की कमी से जोड़ो में या पीठ में या मसल्स में दर्द महसूस होता है।
हड्डियों के टूटने की संभावनाः विटामिन डी हड्डियों को मजबूत करने में अहम् भूमिका निभाता है। इसलिए विशेषकर वृद्धावस्था में इसकी कमी के कारण हड्डियां बार-बार टूटने लगती हैं।
रिकेट्स या सूखा रोगः वैसे तो आजकल इस रोग के होने की संभावना ना के बराबर हो गई है लेकिन इसकी हद से ज्यादा कमी के कारण बच्चों में सूखा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
विटामिन डी 2 और विटामिन डी3 में अंतर
विटामिन डी, दो प्रकार के होते हैं, जो विटामिन डी2 और विटामिन डी3 के नाम से जाना जाता है। शरीर को विटामिन डी2 और विटामिन डी3 दोनों की जरूरत होती है और दोनों मिलकर विटामिन डी की जरूरत को पूरा करते हैं। विटामिन डी3 और विटामिन डी2 के गुण एक दूसरे से कुछ मायनों में अलग हैं। विटामिन डी वसा घुलनशील विटामिन होता है जो दो विटामिन डी2 (अर्गोंकैल्सिफेरॉल) और विटामिन डी3 (कॉलेकैल्सिफेरॉल) से मिलकर बना होता है। लेकिन दोनों का स्रोत एक दूसरे से बिल्कुल अलग होता है। विटामिन डी3 पशुओं से मिलता है, जैसे- मछली, फिश ऑयल, अंडे की जर्दी, मक्खन और डायटरी सप्लीमेंट्स जबकि डी2 पौधों से जैसे- मशरूम (लेकिन जो धूप में उगे हुए होते हैं) और फॉर्टिफाइड फूड्स से मिलता है। विटामिन डी का प्रमुख स्रोत सूरज की किरणें हैं, जिसमें अल्ट्रावायलट बी (यूवीबी) होता है। वह त्वचा में 7-डिहाइड्रोकोलेस्टेरॉल यौगिक के साथ संयोजन करके विटामिन डी3 बनाने का काम करता है। इसी तरह की प्रक्रिया पौधों और मशरूम से होती है। यहां भी अल्ट्रावायलट किरणें पौधों में मौजूद तेल के यौगिक के साथ मिलकर विटामिन डी2 बनाते है। आपके शरीर को मिल रहे विटामिन डी2 और विटामिन डी3 को लीवर चयापचय प्रक्रिया द्वारा कैल्सिफेडॉल में बदलने का काम करता है। लीवर चयापचय के प्रक्रिया द्वारा विटामिन डी2 को 25-हाइड्रोक्सीविटामिन डी2 और विटामिन डी3 को 25-हाइड्रोक्सीविटामिन डी3 में बदल देता है। रिसर्च के अनुसार इस प्रक्रिया के दौरान दोनों का उत्पादन भिन्न-भिन्न मात्रा में होता है, जिसके यौगिक को कैल्सिफेडॉल कहते हैं। कैल्सिफेडॉल रक्त में इसके स्तर से पता चलता है कि शरीर में इसकी मात्रा कितनी है।
विटामिन डी 3 की कमी पर क्या करें
शरीर में विटामिन डी 3 की कमी से बचने के लिए रोज़ाना 15-20 मिनट धूप में बैठें। इसके साथ ही अपने भोजन में एग यॉक, दूध, मक्खन, पनीर, मछली, गाजर, कॉड लीवर ऑयल, सोया मिल्क, संतरे का जूस, मशरूम जैसी चीज़ें शामिल करें।